बुंदेलखंडके सुआटा पर डॉक्यूमेंट्री

आश्विन मास ;की शारदीय नवरात्र में सुआटा खेलने की परंपरा है। बुंदेलखंड में सुआटा लोकउत्सव के रूप में  कुंवारी बालिकाओं द्वारा खेला जाता है । सुआटा खेलने का स्वरूप एक प्रकार से लोकनाट्यात्मक है । जो गीत एवं संवाद आधारित है । यह लोक उत्सव मामूलिया से शुरू होता है और क्वार की पुर्णिमा को सुआटा के विवाहध्तेहरवी  तक लगभग एक माह तक खेला जाता है । शारदीय नवरात्र में नौ दिनों के दौरान अलग.अलग विधान के साथ खेला जाता है । सुआटा के विषय में कई दंत कथाएं प्रचलित है । जिन लड़कियों का विवाह हो जाता है उनके विवाह के प्रथम वर्ष में सुआटा उजने ;पूजनद्ध की परंपरा है । सुबह 4.5 बजे जब सुआटा खेलने बाली बालिकाएं श्सूरज मल के घुल्ला छूटेए चंद्रा मल के घुल्ला छूटे एवं हमाई गौर की झाई देखोश् मनोहारी बुंदेली गीत गाती है । तो सुनकर मन स्वतः ही प्रसन्न होने लगता है । सुआटा में बालिकाएं चौक लीपनाए रंगोली बनानाए बुंदेली गीत जैसी सांस्कृतिक परंपरा से परिचित होती है । बुंदेलखंड की यह सुंदर परंपरा धीरे दृ धीरे विलुप्त हो रही है । अब यह शहरो में बहुत कम देखने को मिलती है । बुंदेलखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में सुआटा अब भी देखने को मिल जाता है। इस संस्कृति को सहेजने एवं देश.विदेश में परिचित कराने के उद्देश्य से सुआटा पर आधारित डॉक्यूमेंट्री का निर्माण किया जा रहा है । जिसका  निर्देशन राजेश अहिरवार ने किया  है । इस डॉक्यूमेंट्री  का फिल्मांकन दतियाए झाँसी एवं उरई के आस.पास के स्थानों पर किया गया है ।  डॉक्यूमेंट्री के फिल्मांकन में बुंदेली संस्कृति के जानकार एवं साहित्यकार विनोद मिश्रए अतर सिंह  साहू एवं नीतू सिंह का विशेष सहयोग रहा है ।